Bihar Board Class 10 Hindi Solutions | पद्य | Chapter 1 राम बिनु बिरथे जनि जनमा
1. पद | राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा (Ram Nam Binu Birthe Jagi Janma) | जो नर दुख में दुख नहीं माने (Jo nar dukh me dukh nahi mane)
लेखक परिचय
जन्म- 15 अप्रैल 1469 ई0, नानकाना साहिब, पंजाब, पाकिस्तान
मृत्यु- 22 सितंबर 1539 ई0, करतारपुर
पिता- कालूचंद खत्री, माँ- तृप्ता
इनके पिता ने इन्हें व्यवसाय में लगाने का काफी प्रयास किया, लेकिन इनका मन सांसारिक कार्य में नहीं रमा। इन्होंने हिन्दु-मुस्लिम दोनों को समान धार्मिक उपासना पर बल दिया तथा वर्णाश्रम व्यवस्था एवं कर्मकाण्ड के विरोध करके निर्गुण भक्ति का प्रचार किया।
‘सिख धर्म‘ के प्रवर्क गुरुनानक ने मक्का-मदीना तक की यात्रा की। इन्होंनें 1539 ई0 में वाहे गुरु कहते हुए भौतिक शरीर का त्याग कर दिया।
पाठ परिचय (Ram Nam Binu Birthe Jagi Janma)
इस पाठ में सच्चे हृदय से राम नाम अर्थात् ईश्वर का जप करने की सलाह दी गई है तो बाह्य आडंबर, पूजा-पाठ और कर्म-काण्ड की कड़ी आलोचना की गई है। सुख-दुख में हमेशा एकसमान रहने की सलाह दी गई है।
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा।
बिखु खावै बिखु बोलै बिनु नावै निहफलु मटि भ्रमना ।।
पुसतक पाठ व्याकरण बखाणै संधिया करम निकाल करै।
बिनु गुरुसबद मुकति कहा प्राणी राम नाम बिनु अरुझि मरै।।
अर्थ – गुरु नानक कहते हैं कि जो राम के नाम का स्मरण नहीं करता है, उसका संसार में आना और मानव शरीर पाना व्यर्थ चला जाता है। बिना कुछ बोले बिष का पान करता है तथा मयारूपी मृगतृष्णा में भटकता हुआ मर जाता है अर्थात् राम का गुणगान न करके मायाजाल में फँसा रहता है। शास्त्र-पुराण की चर्चा करता है, सुबह, शाम एवं दोपहर तीनों समय संध्या बंदना करता है। नानक लोगों से कहता है कि गुरु (भगवान) का भजन किए बिना व्यक्ति को संसार से मुक्ति नहीं मिल सकती तथा सांसारिक मायाजाल में उलझकर रह जाना पड़ता है।
डंड कमंडल सिखा सूत धोती तीरथ गबनु अति भ्रमनु करै।
राम नाम बिनु सांति न आवै जपि हरि-हरि नाम सु पारि परै।।
जटा मुकुट तन भसम लगाई वसन छोड़ि तन मगन भया।।
गुरु परसादि राखिले जन कोउ हरिरस नामक झोलि पीया।
अर्थ:- ऐसे प्राणी बाहरी दिखावा के लिए डंडा, कमंडल, शिखा, जनेऊ तथा गेरुआ वस्त्र धारण कर तीर्थ यात्रा करते रहते हैं, लकिन राम नाम का भजन किए बिना जीवन में शांति नहीं मिलती है। भगवान का नाम ले लेकर पैर पुजाते हैं। वे अपने को संत कहलाने के लिए जटा को मुकुट बनाकर, शरीर में राख लगाकर, वस्त्रों को त्यागकर नग्न हो जाते हैं। संसार में जितने जीव-जन्तु हैं, उन जीवों में जन्म लेते रहते हैं। इसलिए लेखक कहते हैं कि भगवान की कृपा को ध्यान में रखकर नानक ने राम का घोल पी लिया, ताकि असार संसार से मुक्ति मिल जाए।
जो नर दुख में दुख नहीं मानै
जो नर दुख में दुख नहीं मानै।
सुख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै।।
नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ मोह अभिमाना।
हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना।।
आसा मनसा सकल त्यागि कै जग तें रहै निरासा।
अर्थ:- गुरु नानक कहते हैं कि जो मनुष्य दुख को दुख नहीं मानता है, जिसे सुख-सुविधा के प्रति कोई आसक्ति नहीं है और न ही किसी प्रकार का भय है, जो सोना को मिट्टी जैसा मानता है। जो किसी की निंदा से न तो घबड़ाता है और न ही प्रशंसा सुनकर गौरवान्वित होता है। जो लाभ, मोह एवं अभिमान से परे है। जो हर्ष एवं विषाद दोनों में एक-सा रहता है, जिसके लिए मान-अपमान दोनों बराबर हैं। जो आशा-तृष्णा से मुक्त होकर
सांसारिक विषय-वासनाओं से अनासक्त रहता है।
काम क्रोध जेहि परसे नाहिन तेहि घट ब्रह्म निवासा।।
गुरु कृपा जेहि नर पै कीन्हीं तिन्ह यह जुगति पिछानी।
नानक लीन भयो गोबिन्द सो ज्यों पानी संग पानी।।
अर्थ:- जिसने काम-क्रोध को वश में कर लिया है, वैसे मनुष्य के हृदय में ब्रह्म का निवास होता है। अर्थात् जो मनुष्य राग-द्वेष, मान-अपमान, सुख-दुख, निंदा-स्तुति हर स्थिति में एक समान रहता है, वैसे मनुष्य के हृदय में ब्रह्म निवास करते हैं।
गुरु नानक का कहना है कि जिस मनुष्य पर ईश्वर की कृपा होती है, वह सांसारिक विषय-वासनाओं से स्वतः मुक्ति पा जाता है। इसीलिए नानक ईश्वर के चिंतन में लीन होकर उस प्रभु के साथ एकाकार हो गये। यानी आत्मा परमात्मा से मिल गई, जैसे पानी के साथ पानी मिलकर एकाकार हो जाता है।
Bihar Board Class 10 Hindi Solutions | पद्य | Chapter 1 राम बिनु बिरथे जनि जनमा
प्रश्न 1. कवि किसके बिना जगत में यह जन्म व्यर्थ मानता है?
उत्तर: कवि राम-नाम के बिना जगत में यह जन्म व्यर्थ मानता है। राम-नाम के बिना व्यतीत होने वाला जीवन केवल विष का भोग करता है।
प्रश्न 2. वाणी कब विषय से समान हो जाती है?
उत्तर: जब वाणी बाह्य आकर्षण से सम्पन्न होकर राम-नाम को त्याग देती है तब वह विषय हो जाती है। राम-नाम के अतिरिक्त उच्चारण किये जाने वाले शब्द-क्रोध, मद सेवन आदि से परिपूर्ण होती है।
प्रश्न 3. राम-नाम के आगे कवि किस-किस कर्म को व्यर्थ सिद्ध करते हैं?
उत्तर: तन में भेष लगाना, तपस्वी बनना, डंडे कंपवाकर चलना, कठोर संयम, क्रियाएँ, पूजा-पाठ, होम-यज्ञ, जटा-जूट, शरीर में भस्म लगाना, वस्त्रहीन होकर नग्न रूप में घूमना इत्यादि कर्म ईश्वर प्राप्ति के साधन माने जाते हैं। लेकिन कवि कहते हैं कि भगवत नाम-कीर्तन के आगे ये सब कर्म व्यर्थ हैं।
प्रश्न 4. प्रथम पद के आधार पर बताइए कि कवि ने अपने युग में धर्म-साधना को कैसे-कैसे रूप देखे थे?
उत्तर: प्रथम पद में कवि ने धर्म साधना के अनेक लोक प्रचलित रूपों का चर्चा करते हैं। शिक्षा बढ़ाना, ग्रंथों का पाठ करना, व्याकरण वादन इत्यादि धर्म साधना मानी जाती है। इसी तरह तन में भस्म रमाकर साधु वस्त्र धारण करना, तंत्र क्रियाएँ, डंडे कंपवाकर चलना, वस्त्र त्याग कर नग्न रूप में घूमना भी कवि ने अपने युग में धर्म-साधना के रूप में देखे हैं। इन सबका वर्णन उन्होंने पद में दिए हैं।
प्रश्न 5. हरिरस से कवि का अभिप्राय क्या है?
उत्तर: कवि राम नाम की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि भगवान के नाम से बढ़कर अन्य कोई धर्म साधना नहीं है। भक्तों को प्राप्त परमानंद को हरि रस कहा गया है। भगवान के नाम जापना, नाम स्मरण से हृदय उज्ज्वल, हरि कीर्तन में मन लगाना और कीर्तन में उल्लास, परमानंद की अनुभूति करना ही हरि रस है। यही रस पान से जीव मुक्ति हो सकता है।
प्रश्न 6. कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है?
उत्तर: जो प्राणी सांसारिक विषयों की आसक्ति से रहित हो, जो मान-अपमान से परे है, हर्ष-शोक दोनों से जो दूर है, उन प्राणियों में ही ब्रह्म का निवास बताया गया है। काम, क्रोध, लोभ, मोह जिसे नहीं छूते ऐसे प्राणियों में निहित ही ब्रह्म का निवास है।
प्रश्न 7. गुरु की कृपा से किस युक्ति की पहचान हो पाती है?
उत्तर: कवि कहते हैं कि ब्रह्म से साक्षात्कार करने हेतु लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष, मिदा आदि से दूर होना आवश्यक है। ब्रह्म के समीप पहुंचने हेतु सांसारिक विषयों से रहित होना अत्यंत आवश्यक है। जो प्राणी मान, मोह, काम, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या-शोक से रहित हो उसमें ब्रह्म का अंश विद्यमान हो जाता है। वह ब्रह्म को प्राप्त कर लेता है। ब्रह्म प्राप्ति के लिए गुरू की कृपा आवश्यक है। वही ज्ञान देता है और केवल वही ब्रह्म को जानने की युक्ति का ज्ञान नहीं बल्कि ब्रह्म को जानने की युक्ति का ज्ञान देता है। गुरु कृपा से प्राप्त ज्ञान ही परमानंददायक होता है।
प्रश्न 8. व्याख्या करें :
(क) राम नाम बिनु अघ उर मेरे।
(ख) कंचन माटी जानी।
(ग) हर्ष शोक रहे निआरो, नाही मान अपमाना।
(घ) नानक लीन भयो गोविंद सों, ज्यों पानी संग पानी।
उत्तर:
(क) प्रस्तुत पदांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी साहित्य के महान संत कवि गुरु नानक जी द्वारा लिखित "राम नाम बिनु निरगुण जनि जनमा" पाठ के उद्धरण हैं। गुरुनानक निर्गुण, निराकार ईश्वर के उपासक तथा हिंदी की निर्गुण भक्ति धारा के प्रमुख कवि हैं। यहाँ राम नाम की महत्ता पर प्रकाश डाला है।
प्रस्तुत व्याख्या पवित्र और निर्गुणवादी विचारधारा के कवि गुरुनानक राम-नाम की गरिमा मानवीय जीवन में कितनी है इसका उपमाओं एवं तुलनाओं द्वारा अत्यंत प्रभावशाली चित्रण करते हैं। संसार की व्यर्थता, संसार की पीड़ितता मानव को विष के बोध रूप में समझाकर कवि राम-नाम स्मरण को सभी प्रकार की प्रलोभ-भाव से बँधाई से हटा के इस जीवन को पूर्णता देने का मार्ग बताते हैं। कवि कहते हैं कि जब तक हम राम-नाम को अपने जीवन में महत्व नहीं देते तब तक मानवीय मनः चेतना का विकास संभव नहीं है। राम-नाम के प्रभाव से ही मानव जीवन की सत्यता, सार्थकता और पवित्रता प्राप्त होती है।
(ख) प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी साहित्य के "नर दुःख में दुःख न माने" पाठ से उद्धृत है। प्रस्तुत पंक्ति में गुरुनानक ईश्वर के उपासक गुरुनानक सुख-दुःख के सम भाव उपदेशित करते हैं।
(ग) प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने हमें यह बताया है कि हमारे लिए सुख-दुःख से परे होना ही परमसुख प्राप्ति है। वे कहते हैं कि जब तक हम हर्ष-शोक, मान-अपमान जैसी आसक्ति से दूर नहीं होंगे तब तक हम ईश्वर प्राप्ति नहीं कर सकते। एक भक्त को सदा इन भावनाओं से ऊपर उठकर समत्व की भावना रखनी चाहिए, तभी वह ईश्वर-प्राप्ति कर सकता है।
(घ) प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी साहित्य के महान संत कवि गुरु नानक द्वारा रचित "जो नर दुःख में दुःख नहीं माने" पाठ से उद्धृत है। यह पद उनकी भक्ति भावना की महत्ता को प्रकट करता है। मनुष्य जब अपने अस्तित्व को ब्रह्म में विलीन कर देता है, तब वह पूर्णता प्राप्त करता है।
कवि कहते हैं कि यह जीव ब्रह्म का ही अंश है। जब हम विषयों की आसक्ति से दूर रहकर गुरु की प्रेरणा से ब्रह्म रूप पाने की साधना करते हैं तब ब्रह्म का साक्षात्कार होता है और ऐसा होने से जीव ब्रह्ममय हो जाता है।
प्रश्न 9. आधुनिक जीवन में उपासना के प्रचलित रूपों को देखते हुए "राम नामक" के इन पदों की क्या प्रासंगिकता है? अपने शब्दों में विचार करें।
उत्तर: आधुनिक जीवन में उपासना के विभिन्न स्वरूप दिखाई पड़ते हैं। ईश्वर की उपासना में लोग तिलकधारी करते हैं, जटा-जूट बढ़ाकर, भस्म रमाकर स्वयं ढोंग रचते हैं। राम नाम का स्मरण करने के स्थान पर लोग दान पुण्य और बाहरी प्रदर्शन को अधिक महत्व देते हैं। मंदिर-मस्जिद जाकर परमार्थ का प्रदर्शन करते हैं जबकि संत कवि राम-नाम को ही सर्वश्रेष्ठ साधन मानते हैं।
धार्मिक बाह्याडंबरों और कर्मकांडों में फँसकर हम सच्चे भक्ति भाव को नहीं पाते हैं जिससे आत्मिक शांति और मोक्ष की भी प्राप्ति नहीं होती। संत कवियों के पदों से हमें यह शिक्षा मिलती है कि राम-नाम स्मरण ही सबसे बड़ा असरकारी है।
आज के समय में जब लोग आडंबर और पाखंड की ओर अग्रसर हैं, यह पद हमें सच्ची साधना की ओर ले जाते हैं। राम-नाम में ही वह शक्ति है जो जीवन के विष को अमृत में बदल सकती है।
ईश्वर भक्ति में दिखावा नहीं होना चाहिए। राम-नाम की सच्ची भावना से ही आत्मिक शांति, सादगी, विनम्रता, संतोष, ईश्वर की अनुभूति को प्राप्त किया जा सकता है। हरि रस प्राप्त कर जीवन को महान बनाया जा सकता है। संत कवियों की यह शिक्षा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी पहले थी।
भाषा की बात
प्रश्न 1. पद में प्रयुक्त निम्नलिखित शब्दों के मानक आधुनिक रूप लिखें।
बिरथ, बिष, निर्गुण, माटी, संध्या, करम, गुरमुख, तीर्थयात्रानन्द, महिअजल, सरब, माटी, आकृति, निआरो, जुगति, पिछानी
उत्तर –
शब्द | आधुनिक रूप | अर्थ |
---|---|---|
बिरथे | व्यर्थ | निष्फल |
बिसर | विस्मृत | विष |
निषफल | निष्फल | माटी |
संखिअा | संख्या | करण |
गुरसब्द | गुरु का उपदेश | तीर्थयात्रा-गमन |
महीअजल | धरती पर | सत्य |
माटी | मिट्टी | निआरो – भिन्न, विशेष |
जुगति | उपाय | पिछानी – पहचान |
प्रश्न 2. दोनों पदों में प्रमुख सर्वनामों को छाँटिए और उनके भेद बताइए।
उत्तर –- कहाँ – प्रश्नवाचक सर्वनाम
- कोई – अनिश्चितवाचक सर्वनाम
- ते – पुरुषवाचक सर्वनाम
- से – निश्चयवाचक सर्वनाम
- जो – संबंधवाचक सर्वनाम
प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों का वाक्य-प्रयोग करते हुए लिंग-निर्णय करें –
ज्ञान, मुक्ति, आकृति, जल, सन्त, जुगति, सुर्तीउत्तर –
- ज्ञान – ज्ञान बड़ा है। (पुल्लिंग)
- मुक्ति – उसे मुक्ति मिल गई। (स्त्रीलिंग)
- आकृति – वह आकृति सुंदर है। (स्त्रीलिंग)
- जल – जल ठंडा है। (पुल्लिंग)
- सन्त – सन्त चले गए। (पुल्लिंग)
- जुगति – उसकी जुगति अद्भुत थी। (स्त्रीलिंग)
- सुर्ती – ईश्वर की सुर्ती करनी चाहिए। (स्त्रीलिंग)
प्रश्न 4. निम्नलिखित विशेषणों का स्वतंत्र वाक्य प्रयोग करें –
व्यर्थ, निष्फल, नम, सर्व, न्याय, सकलउत्तर –
- व्यर्थ – राम नाम के बिना जीवन व्यर्थ है।
- निष्फल – प्रयास निष्फल हो गया।
- नम – वह नम बैठा है।
- सर्व – सर्व नष्ट हो गया।
- न्याय – संसार न्याय रहित है।
- सकल – आतंकवाद पर सकल विश्व एक हुआ।
काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
1. राम नाम बिनु बिरथे जनि जनमा।
2. जो नर दुःख में दुःख नहीं माने।
प्रश्न:
(क) कविता और कवि का नाम लिखें।
(ख) पद का प्रधान विषय।
(ग) पद का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर:
(क) कवि – गुरुनानक | कविता – जो नर दुःख में दुःख नहीं माने।
(ख) निर्गुण निराकार ईश्वर के उपासक गुरुनानक ने प्रस्तुत कविता में सुख-दुख में एक समान उदासीन रहते हुए मानवीय दुर्बलता से ऊपर उठकर अंतःकरण की निर्मलता प्राप्त करने पर ज़ोर दिया है। संत कवि गुरु की कृपा को ईश्वर-प्राप्ति के लिए आवश्यक मानते हैं और वही प्रेरणा स्रोत है।
(ग) प्रस्तुत कविता में कवि ने निर्गुणवादी सत्ता को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि जो मनुष्य सुख-दुख को दुःख नहीं मानता अर्थात् आत्मा की समान स्थिति में रहता है, वही सच्चा भक्त है जो जीवन सार्थक बना लेता है। जिसको निंदा-सम्मान, हर्ष-शोक, लोभ-मोह, अभिमान प्रभावित नहीं करते, वही व्यक्ति संतत्व प्राप्त कर सकता है।
वह व्यक्ति ही गुरु की कृपा प्राप्त करता है। जो मनुष्य न किसी की निंदा करता है न प्रशंसा चाहता है, लोभ, मोह, अभिमान से दूर रहता है, वे सुख में प्रसन्नता जाहिर करते हैं और दुःख में विचलित नहीं होते।
आशा, तृष्णा, बड़ी-बड़ी कामनाओं से दूर रहता है, वह क्रोध और चिंता-विचारों नहीं करता है उसी के हृदय में ब्रह्म का निवास होता है।
गुरुनानक कहते हैं कि जिस व्यक्ति पर गुरु की कृपा होती है वही व्यक्ति ईश्वर को पहचान सकता है।
यहाँ तक कि ईश्वर के उपासक गुरुनानक ने अपने गुरु के प्रति गोविंद की भक्ति में उसी तरह मिल जाने की तुलना की है जिस तरह पानी में संग पानी मिल जाता है।
(घ) भाव सौंदर्य – प्रस्तुत कविता का भाव यह है कि जो मनुष्य सुख-दुख में एक समान रहता है, आशा-निराशा से दूर रहता है, निंदा-प्रशंसा में भी समान स्थिति में रहता है वहीं व्यक्ति गुरु की कृपा होते ही वहीं व्यक्ति ईश्वर का आनंद पाता है क्योंकि गुरु कृपा के बिना ईश्वर की पहचान नहीं हो सकती।
(ङ) काव्य सौंदर्य –
(i) यहाँ भाव के अनुसार ही भाषा का प्रयोग है।
(ii) ईश्वर भक्ति और गुरु भक्ति का सामंजस्य स्थापित किया गया है।
(iii) पंजाबी मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग सफल रूप में प्रतीत होता है।
(iv) भाषा में संप्रेषणीयता, सरलता और सौंदर्य आ गया है।
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प्रश्न 1. राम नाम बिनु बिरथे जनि जनम्या किस कवि की रचना है?
(क) गुरु नानक
(ख) गुरु अर्जुनदेव
(ग) रसखान
(घ) प्रेमघन
उत्तर – (क) गुरु नानक
प्रश्न 2. गुरु नानक की रचना है –
(क) अति सूधो सनेह को मारता है
(ख) मो अंघुलि गहि ले बरसो
(ग) जो नर दुःख में दुःख नहीं माने
(घ) स्वदेश
उत्तर – (ग) जो नर दुःख में दुःख नहीं माने
प्रश्न 3. गुरु नानक के अनुसार किसके बिना जन्म व्यर्थ है?
(क) सम्पत्ति
(ख) ईष्ट मित्र
(ग) पत्नी
(घ) राम नाम
उत्तर – (घ) राम नाम
प्रश्न 4. ब्रह्म का निवास कहाँ होता है?
(क) समृद्ध में
(ख) काम-क्रोधहीन व्यक्ति में
(ग) स्वर्ग में
(घ) आकृति में
उत्तर – (ख) काम-क्रोधहीन व्यक्ति में
प्रश्न 5. गुरु कृपा की महिमा का वर्णन किस कवि ने किया है?
(क) घनानंद
(ख) रसखान
(ग) गुरु नानक
(घ) सुमित्रानंदन पंत
उत्तर – (ग) गुरु नानक
प्रश्न 6. गुरु नानक किस भक्ति धारा के कवि हैं?
(क) सगुण भक्ति धारा।
(ख) निर्गुण भक्ति धारा।
(ग) किसी भी धारा के नहीं।
(घ) किसी भी धारा के नहीं।
उत्तर – (ख) निर्गुण भक्ति धारा
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
प्रश्न 1. गुरु नानक का जन्म सन् ............. में हुआ था।
उत्तर – 1469
प्रश्न 2. ........ गुरु नानक के पिता थे।
उत्तर – कालूराम खत्री
प्रश्न 3. गुरु नानक ने ............. की स्थापना की।
उत्तर – सिख पंथ
प्रश्न 4. गुरु नानक ने पंजाबी के साथ .... में कविताएं की।
उत्तर – हिंदी
प्रश्न 5. सामाजिक विद्रोह गुरु नानक की कविताओं का .... नहीं है।
उत्तर – विषय
प्रश्न 6. गुरु नानक की कविताओं में .......... की महत्ता निर्विवाद है।
उत्तर – सजीव प्रेम
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. गुरु नानक का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर – गुरु नानक का जन्म तलवंडी नामक गाँव ज़िला-लाहौर में हुआ था जो फिलहाल पाकिस्तान में है। उस स्थान को अब नानकाना साहिब कहते हैं।
प्रश्न 2. गुरु नानक किस युग के कवि थे?
उत्तर – गुरु नानक मध्य युग के संत कवि थे।
प्रश्न 3. 'गुरु ग्रंथ साहिब' किन-किन का प्रमुख ग्रंथ है?
उत्तर – गुरु ग्रंथ साहिब सिखों का पवित्र ग्रंथ है। इसमें गुरु नानक एवं कुछ अन्य संतों की रचनाएँ संकलित हैं।
प्रश्न 4. कवि किसके बिना जन्म को यह जन्म व्यर्थ मानता है?
उत्तर – कवि राम-नाम के बिना जन्म को व्यर्थ मानता है।
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