Bihar Board Class 10 Hindi Solutions | पद्य | Chapter 1 राम बिनु बिरथे जनि जनमा
1. पद |प्रेम-अयनि श्री राधिका (Prem Ayani Shri Radhika) करील के कुजंन ऊपर वारौं
लेखक परिचय
लेखक- रसखान
पूरा नाम- सैय्यद इब्राहिम खान
जन्म- 1548 ई0, एक पठान परिवार (दिल्ली में)
मृत्यु- 1628 ई0
रसखान मूल रूप से मुसलमान थे, फिर भी इन्होंने जीवन भर कृष्णभक्ति का गान किया। कृष्ण के प्रति इनकी भक्ति देखकर गोस्वामी विट्ठलनाथ जी ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया। बाल्यावस्था से ही यह प्रेमी स्वभाव के थे। बाद में यहीं प्रेम ईश्वरीय प्रेम में बदल गया। ऐसी मान्यता है कि इन्हें श्रीनाथ जी के मंदिर में साक्षात् कृष्ण के दर्शन हुए थे। इसी कृष्ण दर्शन से उत्प्रेरित हो कर ब्रजभूमि में रहने लगे और मृत्यु तक वहीं रहे।
प्रमुख रचनाएँ- सुजान रसखान तथा प्रेमवाटिका
प्रेम- अयनि श्री राधिका
प्रेम-अयनि श्री राधिका, प्रेम-बरन नँदनंद।
प्रेम-बाटिका के दोऊ, माली-मालिन-द्वन्द्व।।
मोहन छबि रसखानि लखि अब दृग अपने नाहिं।
अँचे आवत धनुस से छूटे सर से जाहिं।।
रसखान कवि कहते हैं कि राधा प्रेमस्वरूपा है तो श्रीकृष्ण प्रेमरूप है। ये दोनों प्रेमरूपी वाटिका के माली-मालिन के समान हैं। कवि ने जब से इन दोनों को देखा है, उनकी आँखें उन्हीं दोनों को देखती रहती है। क्षण भर के लिए आते हैं और जैसे धनुष से बाण छूटता है, उसी प्रकार आते-जाते रहते हैं।
मो मन मानिक लै गयो चितै चोर नँदनंद।
अब बे मन मैं का करूँ परी फेर के फंद।।
प्रीतम नन्दकिशोर, जा दिन तै नैननि लग्यौ।
मन पावन चितचोर, पलक ओट नहिं करि सकौं।
श्रीकृष्ण ने उसके मन को चुरा लिया है जिस कारण मन इच्छा रहित हो गए हैं। वह इस प्रेम के जाल में बुरी तरह फँस गए हैं। रसखान अपनी विवशता प्रकट करते हुए कहते हैं कि जिस दिन से उनके दर्शन हुए हैं, उसने मन चुरा लिया है। हर क्षण कृष्ण एवं राधा के रूप सौन्दर्य को अपलक देखते रहते हैं।
करील के कुंजन ऊपर वारौं
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर की तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवोनिधि को सुख नन्द की गाइ चराई बिसारौं।।
कवि रसखान अपने हार्दिक अभिलाषा प्रकट करते हुए कहते हैं कि श्रीकृष्ण की लाठी और कंबल पर तीनों लोक के राज्य का त्याग कर दूँ। नंद बाबा की गाय चराने का अवसर मिल जाए तो आठों प्रकार की सिद्धियों तथा नव-निधियों के सुखों का त्याग करने में मुझे कष्ट महसूस नहीं होगा।
रसखानी कबौं इन आँखिन सौं ब्रज के बनबाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक रौ कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।।
कवि का कहना है कि जब से ब्रज के वनों, निकुंजों, तालाबों तथा करील के सघन कुँजों को अपनी आँखों से देखा हूँ, तब से इच्छा होती है कि ऐसे मनोहर निकुंजों की सुन्दरता के समक्ष करोड़ों सुनहरे महल तुच्छ प्रतीत होतें हैं अर्थात् ऐसे मूल्यवान् महलों को छोड़कर जहाँ कृष्ण रासलीला करते थे, वहीं निवास करू
अध्याय:
कविता के साथ
प्रश्न 1. कवि ने माली-मालिन किसे और क्यों कहा है ?
उत्तर:- कवि ने माली-मालिन कृष्ण और राधा को कहा है। क्योंकि कवि राधा-कृष्ण के प्रेममय युग को प्रेम भरे नैन से देखता है। प्रेम को बोलीन भावनाओं में और उस प्रेमातीतता को गोपीन-नायिकाओं की मनःस्थिति में। राधिका को विहंगिनी माली-मालिन की दृष्टि एक फूल पर गिर पड़ी है। अतः कवि उस प्रेम वातिका की सुगंधित पटलवती कृष्ण और राधा के दर्शन ही वर मांगते हैं।
प्रश्न 2. हिंदी कविता का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर:- इस कविता के प्रत्येक स्तर में भाव के अनुरूप भाषा का प्रयोग अत्यंत मार्मिक है। सम्पूर्ण छन्द में बिम्बजाल की सुस्पष्टता, सहजता और मोहकता देखी जा सकती है। रचना सौंदर्य और तत्व की साम्यता रस में मिल रही है। कवि भाव-गौरव को जिस सुंदर रूप में शब्दों में पिरोता है वह उसकी सृजनशीलता को प्रकट करता है। भाषा में प्रकृति, मानवता और अध्यात्म की सुगंध है। शैली अत्यंत सहज, स्वाभाविक एवं काव्यात्मक है। सम्पूर्ण रचना में आत्म-समर्पण की भावना को शब्द रूप दिया गया है।
प्रश्न 3. कृष्ण और राधा का प्रेम कैसा रहा है? कवि को अभिव्यक्त करें।
उत्तर:- कवि कृष्ण और राधा के प्रेम में मनमग्न हो गये हैं। उनके मनोहारी छवि को देखकर मन पूर्णः उस युगल में रम जाता है। राधिका के रूप देखते हुए कवि की मनः स्थिति भी कृष्ण में रम जाती है। चित्र राधा-कृष्ण की प्रेममयी जोड़ी में लग चुका है। कवि लगता है कि यह शरीर रस एवं रस रत्न रूपी हो गया। इसलिए राधा और कृष्ण को कवि प्रेम कहा गया है। राधिका मोहित दृष्टि रूप में इस प्रकार झुकती है कि कवि अपनी सुध बुध खो बैठते हैं। केवल कृष्ण ही पुष्पित पटल पर आकर्षित नहीं है और कुछ भी दिखाई नहीं देता है।
प्रश्न 4. सवैय्ये में कवि की कौन सी आकांक्षा प्रकट होती है? भावार्थ बताते हुए स्पष्ट करें।
उत्तर:- प्रेमरस-सीख की रसानुभूति द्वारा रचित सवैय्ये में कवि की आकांक्षा प्रकट हुई है। इसके माध्यम से कवि कहता है कि कृष्ण लीला को कवि अपने अन्यान्य रूपों में देखता है और कृष्ण की लीलाओं और कार्यभार पर मोहित लोगों को देखकर वह चाहता है कि वह भी आत्म समर्पण कर दे। कवि कृष्ण के चरणों में पवित्र भाव से समर्पित होना चाहता है। वह राधिका के माध्यम से अपनी अंतःप्रेरणा और मनोवृत्ति को स्पष्ट करता है। कृष्ण का स्वरूप उसकी आँखों में समाया हुआ है। यही आकांक्षा कवि के सवैय्ये में प्रकट होती है। यह आकांक्षा मन की आतंरिक शक्ति और नई सोच को प्रकट करता हुआ सच्चा भाव पूर्णता को दर्शाता है। भक्तों के वाणी के ऊपर करोड़ों इसके प्रेम भाव को सौंदर्य और आकर्षण कर देने की अभिव्यक्ति आकांक्षा प्रकट करती है।
प्रश्न 5. व्याख्या करें:-
(क) मन पावन विचरैं, पलक ओट नहिं करैं करौं।
(ख) रससौं कहौं इन ऑंखिन सौ ब्रज के बनावन तसब निहारौं।
उत्तर:- (क) प्रस्तुत दोहे में कवि राधिका के माध्यम से श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित हो जाना चाहता है। जिस दिन से श्रीकृष्ण की आँखों चार हुई उसी दिन से सुध-बुध समाप्त हो गई। पवित्र चिन्त को सुनते वाले श्रीकृष्ण से पलक हटने के बाद भी आकांक्षा उस सुदर्शन की बनी रहती है। सच्चाई:- यहाँ कवि कहना चाहता है कि प्रेमिका अपने प्रियतम को अपनी आँखों में बसाना चाहती है।
(ख) प्रस्तुत दोहा भक्त कवि रसानंद द्वारा रचित हिंदी मधु-ग्रंथ के "कवित्त में मनहु ऊपर वारे" पंक्ति का व्याख्यान है। इसमें कवि रसानंद द्वारा रचित हिन्दी सवैय्ये में भक्तिकालीन प्रेम रस की चरम अभिव्यक्ति मुखरित होती है। यह प्रेम तल्लीनता की अवस्था एवं तालाब की गहराई कर दृढ़ निश्चय करते हुए नीरतर उसकी ओर बढ़ते रहने की आकांक्षा प्रकट करती है।
प्रस्तुत व्याख्यान पवित्र के सम्बन्ध में कहा करते हैं कि उसका भी भागीदारी लगातार और शाश्वत एवं अनुपम है। प्रेम रस से भरी रचना के भीतर भक्त कवि की यह अवस्था साक्षात होती है। वह श्रीकृष्ण की प्रेम रसिका राधा की मनोवृत्ति को देखकर स्वयं को भूल जाता है और श्रीकृष्ण के चरणों में आत्म समर्पण कर देता है। उसकी आकांक्षा है कि वह उन सजीव आँखों को देखें जिनमें श्रीकृष्ण की छवि बनी हुई है। इसीलिए कवि को कृष्ण-लीला रस की रसना बनी है।
प्रेम रस में डूबे शब्दों में अभिव्यक्ति हुई है। प्रेम की नाद ही उस तसब का रूप है।
सभी चीजें उन्हें मनोहर लगती है।
प्रश्न 6. प्रेम-अयनी श्री राधिका पाठ का भाव/सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:- प्रेम-अर्चिनी श्री राधिका पाठ में राधा और कृष्ण के प्रेममय रूप पर मुख्य प्रकाश डालते हैं तथा प्रेम भावना को दर्शाता है। कवि इस कविता के माध्यम से आत्म-समर्पण, प्रेम की गहराई और मन की एकाग्रता को प्रस्तुत करता है। श्रीकृष्ण की दिव्य छवि, उनकी लीलाएं तथा राधिका का उनके प्रति समर्पण कवि को प्रभावित करता है।
इस कविता में कवि ने श्रीकृष्ण की लीला को अत्यंत मार्मिक रूप में प्रस्तुत किया है। कवि राधिका के माध्यम से अपने भावों की अभिव्यक्ति करते हुए प्रेम की उस पराकाष्ठा को दिखाना चाहता है जहाँ आत्मा और परमात्मा एक हो जाते हैं। कविता का भाव है कि प्रेम में डूबा हुआ हृदय किसी भी स्थिति में अपने प्रियतम से अलग नहीं रह सकता। कवि की यह भावना राधिका के भावों से जुड़कर और अधिक प्रभावशाली बन जाती है।
भाषा की बात
प्रश्न 1. समास-निरूपण करते हुए निम्नलिखित पदों के विषय करें –
प्रश्न 2. निम्नलिखित के तीन-तीन पर्यायवाची शब्द लिखें –
प्रश्न 3. कविता से क्रियापदों का चयन करते हुए उनके मूल रूप को स्पष्ट करें।
- "उठाता" क्रियापद का मूल रूप "उठाना" है।
- "गिरती" क्रियापद का मूल रूप "गिरना" है।
- "बहती" क्रियापद का मूल रूप "बहना" है।
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