Bihar Board Class 10th Sanskrit Chapter 3 | अलसकथा | पीयूषम् भाग - 2
अलसकथा | पीयूषम् – भाग 2 : परिचय
"अलसकथा पीयूषम्" बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (BSEB) द्वारा कक्षा 10वीं के संस्कृत पाठ्यक्रम में सम्मिलित एक रोचक एवं शिक्षाप्रद अध्याय है। इसका भाग – 2 आलस्य (कामचोरी, निष्क्रियता) की बुराइयों को उजागर करता है और कर्मशीलता (मेहनत, कर्तव्यनिष्ठा) की महत्ता को सरल, व्यंग्यात्मक तथा कथा शैली में प्रस्तुत करता है।
इस अध्याय के रचनाकार प्रसिद्ध मैथिल कवि विद्यापति हैं। कथा की पृष्ठभूमि मिथिला राज्य है, जहाँ के मंत्री वीरेश्वर के माध्यम से लेखक एक नैतिक संदेश देते हैं कि आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है, जो उसे योग्य होते हुए भी पतन की ओर ले जाता है।
कहानी में दिखाया गया है कि कैसे घर में पड़ी हुई एक आग देखकर सभी लोग भाग जाते हैं, केवल कुछ लोग ही कारण जानने का प्रयास करते हैं। अंत में मंत्री द्वारा आलसी लोगों की परीक्षा ली जाती है और यह सिद्ध होता है कि कर्म ही जीवन का आधार है।
"अलसकथा" (Alaskatha) का अर्थ क्या होता है?
आलसियों की कहानी।
1st Paragraph
संस्कृत: अयं पाठः विद्यापतिकृतस्य कथाग्रन्थस्य पुरुषपरिक्षीतिनामकस्य अंशविशेषो वर्तते। पुरुषपरिक्षा सरलसंस्कृतभाषायां कथारूपेण विविधानां मानवगुणानां महत्वम् वर्णयति, दोषाणां च निराकरणाय शिक्षां ददाति। विद्यापतिः लोकप्रियः मैथिलीकविः आसीत्। अपि च बहूनां संस्कृतग्रन्थानां निर्मातापि विद्यापतिरासीत् इति तस्य विशेषता संस्कृतविषयेऽपि प्रमुखता अस्ति। प्रस्तुतोऽयं पाठो आत्मायामकस्य दोषस्य निराकरणं व्यंग्यात्मक कथा प्रस्तुता विद्यते। नीतिकाराः आलस्यं रिपुरूपं मन्यन्ते।
संधि-विच्छेद :-
पुरुषपरिक्षीतिनामकस्य = पुरुषपरिक्षा + इति + नामकस्य।
निर्मातापि = निर्माता + अपि।
विद्यापतिरासीत् = विद्यापतिः + आसीत्।
संस्कृतविषयेऽपि = संस्कृतविषये + अपि।
व्यंग्यात्मक कथा = व्यंग्य + आत्मिका।
शब्दार्थ :-
अयं – यह।
विद्यापतिकृतस्य – विद्यापति जी द्वारा रचित।
वर्तते – हैं।
विभिन्नानां – विभिन्न के।
वर्णयति – वर्णन करता है।
विशेषता – विशेषता (प्रसिद्ध)।
प्रभुता – बहुत अधिक।
व्यंग्यात्मकिका – व्यंग्य के रूप में।
विद्यते – हैं या विद्यमान हैं।
रिपुः – शत्रु।
मन्यन्ते – मानते हैं।
व्याख्या :-
यह पाठ विद्यापति जी द्वारा रचित पुरुष परीक्षा नामक कथा ग्रंथ का विशेष अंश है। पुरुष परीक्षा सरल संस्कृत भाषा में कथा के रूप से विभिन्न मानवीय गुणों के महत्व का वर्णन करती है।और दोषों के निराकरण या दूर करने के लिए शिक्षा देती है।विद्यापति लोकप्रिय मैथिली कवि थे। और भी बहुत संस्कृत ग्रंथों का निर्माता भी विद्यापति थे, ऐसी उसकी विशेषता संस्कृत विषय में भी बहुत है। प्रस्तुत पाठ में आलस्य नामक दोष के निराकरण में व्यंग्य स्वरूप कथा प्रस्तुत है। नीतिकार लोग आलसी को दुश्मन के स्वरूप मानते हैं।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न :-
Q1. अलसकथा पाठ के रचनाकार कौन है?
उत्तर:- विद्यापति जी।
Q2. अलसकथा पाठ किस ग्रंथ से लिया गया है?
उत्तर:- पुरुषपरीक्षा ग्रंथ।
Q3. अलसकथा पाठ किसके गुणों का वर्णन करता है?
उत्तर:- मानव गुणों का।
Q4. अलसकथा पाठ में मानव के किस अवगुण का वर्णन किया गया है?
उत्तर:- आलस्य।
Q5. विद्यापति कौन थे?
उत्तर:- मैथिली कवि।
Q6. मैथिल कोकिल के नाम से कौन प्रसिद्ध है?
उत्तर:- विद्यापति जी।
Q7. नीतिकार लोग आलस्य को किसके समान मानते हैं?
उत्तर:- रिपु या दुश्मन के समान।
2nd Paragraph
संस्कृत: आसीत् मिथिलायां वीरेश्वरः नाम मन्त्री। स च स्वभावाद् दानशीलः। कारुणिकः च। सर्वेभ्यः दुःखितेभ्यः नाथेभ्यः प्रायः इच्छाभोजनं दापयति। तन्मध्ये अलसेभ्यः अप्यन्नवस्त्रे दापयति।
यतः –
निर्गतीनां च सर्वाभामलसः प्रथमों मतः।
किञ्चिन्न क्षमते कर्तुं जाठरेणापि वह्निना।।
ततोऽलसपुरुषाणां तत्रेशलाभं श्रुत्वा
बहवस्तुन्दपरिमुजास्त्र वर्तुलीबभूवुः यतः –
स्थिति: सौकर्म्यमूला हि सर्वाभामपि संहते।
सजातीनां सुखं दृष्ट्वा के न धावन्ति जन्तवः।।
संधि-विच्छेद :-
कारुणिकश्च = कारुणिकः + च
सर्वेभ्योदुःखितेभ्योऽनाथेभ्यश्च = सर्वेभ्यः + दुःखितेभ्यः + अनाथेभ्यः + च
प्रत्यहमिच्छाभोजनं = प्रत्यहम् + इच्छा + भोजनं
तन्मध्येऽलसेभ्योप्यन्नवस्त्रे = तत् + मध्ये + अलसेभ्यः + अपि + अन्नवस्त्रे
सर्वाभामलसः = सर्वाभाम् + अलसः
जाठरेणापि = जाठरेण + अपि
ततोऽलस = ततः + अलसः
तत्रेशलाभं = तत्र + इष्टलाभं
बहवस्तुन्दपरिमुजास्त्र = बहवः + तुन्दपरिमुजाः + तत्र
सर्वाभामपि = सर्वाभाम् + अपि
शब्दार्थ :-
आसीत् – था।
मिथिलायां – मिथिला में।
स्वभावाद् – स्वभाव से।
कारुणिकः – दयावान।
सर्वेभ्यः – सभी को।
दुर्गतेभ्यः – संकटग्रस्तों को।
अनाथेभ्यः – अनाथों को।
प्रत्यहम् – प्रतिदिन।
इच्छाभोजनं – इच्छा अनुसार भोजन।
दापयति – दिलाते (थे)।
यतः – क्योंकि।
ततः – उसी।
निर्गतीनां – संकट ग्रस्तों के।
सर्वाभाम् – सभी का।
मतः – स्थान (में)।
किञ्चित् – कुछ भी नहीं।
जाठरेण – पेट से / उदर से।
वह्निना – अग्नि।
ततः – इसके बाद।
इष्ट – इच्छित।
श्रुत्वा – सुनकर।
बहवः – बहुत।
तुन्दपरिमुजाः – तोंद बढ़े हुए (लोग)।
वर्तुलीबभूवुः – जमा हो गये।
सौकर्म्यमूला – अपने अनुकूल।
संहते – चाहते हैं।
सजातीनां – अपने जाति (के)।
दृष्ट्वा – देखकर।
के – कौन।
जन्तवः – प्राणियों, जन्तुओं।
हिंदी अर्थ :-
मिथिला में वीरेश्वर नामक मंत्री थे। और वे स्वभाव से दानशील और दयावान थे। सभी संकटग्रस्तों और अनाथों को प्रतिदिन इच्छानुसार भोजन दिलाते थे।
क्योंकि –
संकटग्रस्तों में आलसियों का प्रथम स्थान है। क्योंकि वे पेट की भूख रूपी ज्वाला से तप होकर भी कुछ नहीं करना चाहते हैं।इसके बाद आलसी पुरुषों के वहाँ इच्छित लाभ की सुनकर बहुत से तोंद बड़े हुए लोग जमा हो गये।
क्योंकि –
अपने अनुकूल स्थिति सभी जीव चाहते हैं। अपने जाति के सुख को देखकर कौन जंतु उस ओर नहीं दौड़ते हैं? अर्थात् सभी उस ओर दौड़ते हैं।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न :-
Q1. वीरेश्वर कहाँ रहता था?
उत्तर:- मिथिला में।
Q2. वीरेश्वर कौन था?
उत्तर:- मंत्री।
Q3. वीरेश्वर स्वभाव से कैसा था?
उत्तर:- दयावान।
Q4. मिथिला में वीरेश्वर राजा से किसे अन्न और वस्त्र दिलाते थे?
उत्तर:- गरीब और अनाथ को।
Q5. संकटग्रस्तों में आलसियों का कौन सा स्थान है?
उत्तर:- प्रथम।
3rd Paragraph
संस्कृत: पश्चादलसानां सुखं दृष्ट्वा धूर्ता अपि कृतिममालस्यं दर्शयित्वा भोज्यं गृह्णन्ति। तदनन्तरमलसशालायां बहुद्रव्यव्ययं दृष्ट्वा तत्र न योग्यपुरुषैः परमृषभं – यत् अक्षम्बुद्ध्या करुणया केवलमलसेभ्यः स्वामी वस्तूनि दापयति, कपटनशलसा अपि गृह्णन्ति इत्यस्माकं प्रमादः। यदि भवति तदलसपुरुषाणां परीक्षा कुर्मः इति परमर्षः प्रसुप्तेषु अलसशालायां तत्र योग्यपुरुषाः वह्निं दापयित्वा निर्गत्यपायामासुः।
संधि-विच्छेद :-
पश्चादलसानां = पश्चात् + अलसानां
कृतिममालस्यं = कृतिमम् + आलस्यं
तदनन्तरम् = तत् + अनन्तरम्
तत्र न योग्यपुरुषैः = तत्र + न + योग्यपुरुषैः
यदक्षम्बुद्ध्या = यत् + अक्षम्बुद्ध्या
केवलमलसेभ्यः = केवलम् + अलसेभ्यः
कपटेनशलसा = कपटेन + अनलसा
इत्यस्माकं = इति + अस्माकं
तदलसपुरुषाणां = तत् + अलसपुरुषाणां
शब्दार्थ :-
पश्चादलसानां – इसके बाद आलसियों के।
दृष्ट्वा – देखकर।
धूर्ताः – कपटी।
कृतिममालस्यं – बनावटी आलस्य को।
दर्शयित्वा – दिखाकर।
भोज्यं – भोजन।
गृह्णन्ति – ग्रहण करने लगा।
तदनन्तरम् – इसके बाद।
बहुद्रव्यव्ययं – बहुत धन खर्च को।
तत्र न योग्यपुरुषैः – उन राजपुरुषों द्वारा।
परामृशम् – विचार किया।
करुणया – दया से।
कपटेन – कपट से।
इत्यस्माकं – यह हमारी।
प्रमादः – आलस्य (है)।
कुर्मः – करना चाहिए।
प्रसुप्तेषु – सोये हुए।
वह्नि – आग को।
दापयित्वा – दिलाकर या लगाकर।
हिंदी अर्थ :-
इसके पश्चात आलसियों के सुख को देखकर कपटी भी बनावटी आलस्य दिखाकर भोजन ग्रहण करने लगा। इसके बाद आलसियों के घर बहुत धन के खर्च को देखकर उन राजपुरुषों ने विचार किया – यदि अक्षम् (थोड़ी) बुद्धि अथवा दया से स्वामी केवल आलसियों को वस्तुएँ देते हैं और कपट से अनालसी भी ग्रहण कर रहे हैं, यह हमारी प्रमाद (ग़लती) है। यदि ऐसा है, तो आलसी पुरुषों की परीक्षा करनी चाहिए। ऐसा विचार कर सोए हुए आलसियों के घर में उन राजपुरुषों ने आग लगाकर हल्ला कर दिया।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न :-
Q1. बनावटी आलस्य दिखाकर कौन भोजन ग्रहण करने लगा?
उत्तर:- धूर्त।
Q2. राजपुरुषों के द्वारा किसकी परीक्षा ली गयी?
उत्तर:- आलसियों की।
Q3. अलसशाला में आग किसने लगायी?
उत्तर:- राजपुरुषों ने।
4th Paragraph
संस्कृत: ततो गृहलनं प्रवृद्धमग्निं दृष्ट्वा धूर्ताः सर्वे पलायिताः। पश्चादीपदला अपि पलायिताः। चत्वारः पुरुषास्तत्रैव सुप्ताः परस्परमालपन्ति। एकेन वस्त्रावृतमुखेनोक्तम् – अहो कथमयं कोलाहलः? द्वितीयेनोक्तम् – त्वर्यत यदस्मिन्गृहे अग्निलेनोद्भासते। तृतीयेनोक्तम् – कोऽपि तथा धार्मिको नास्ति य इदानीं जलादैवर्षौभिः कट्वारिस्मान् प्राप्नुयाति। चतुर्थेनोक्तम् – अये वाचालः! कतिवचनानि वक्ष्यः शम्यतः? तृष्णी कथं न तिष्ठति?
संधि-विच्छेद :
प्रवृद्धमग्निं = प्रवृद्धम् + अग्निम्
पश्चादीपदला = पश्चात् + ईषत् + अलसा
पुरुषास्तत्रैव = पुरुषाः + तत्र + एव
परस्परमालपन्ति = परस्परम् + आलपन्ति
वस्त्रावृतमुखेनोक्तम् = वस्त्र + आवृत + मुखेन + उक्तम्
कथमयं = कथम् + अयं
द्वितीयेनोक्तम् = द्वितीयेन + उक्तम्
शब्दार्थ :
गृहलनं – घर में हल्ला
प्रवृद्धमग्निं – प्रज्वलित अग्नि
धूर्ताः – कपटी लोग
पलायिताः – भाग गए
ईषत् – थोड़ा
परस्परम् – आपस में
आलपन्ति – बातचीत कर रहे थे
आवृतमुखेन – मुँह ढँका हुआ
उक्तम् – कहा
कोलाहलः – शोरगुल
त्वर्यत – जल्दी करो
उद्भासते – चमक रहा है
धार्मिकः – धर्मात्मा
जलादैव – केवल जल से
वर्षौभिः – वर्षा की बूंदों से
कट्वारिस्मान् – हमें बचा सके
वाचालः – बहुत बोलने वाला
वचनानि – बातें
शम्यतः – शांत हो जा
तृष्णी – लोभी
न तिष्ठति – नहीं रुकता
हिंदी अर्थ :
इसके बाद जब आग की ज्वाला को देखा गया तो सभी धूर्त (कपटी) लोग भाग गए। फिर थोड़े सुस्त लोग भी भाग गए।चार व्यक्ति वहीं घर में सोए हुए थे और आपस में बातें कर रहे थे।
एक व्यक्ति ने मुँह पर कपड़ा ढँकते हुए कहा – "अरे! यह कैसा शोरगुल है?"
दूसरे ने कहा – "जल्दी करो, घर में आग चमक रही है।"
तीसरे ने कहा – "कोई भी ऐसा धर्मात्मा नहीं है जो अब हमें केवल पानी या वर्षा की बूंदों से बचा सके।"
चौथे ने कहा – "अरे! तुम बहुत बोलते हो। कितनी बातें करोगे? शांत रहो! यह तृष्णा (लोभ) क्यों नहीं रुकती?"
वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
Q1. आग देखकर सबसे पहले कौन भागा?
उत्तर:- धूर्त।
Q2. सोए हुए पुरुष आपस में क्या कर रहे थे?
उत्तर:- बातचीत।
Q3. ‘वाचालः’ शब्द का अर्थ क्या है?
उत्तर:- बहुत बोलने वाला।
Q4. 'तृष्णी' शब्द का अर्थ क्या है?
उत्तर:- लोभी।
Q5. आग को देखकर दूसरा पुरुष क्या कहता है?
उत्तर:- त्वर्यत यदस्मिन्गृहे अग्निलेनोद्भासते।
5th Paragraph
संस्कृत: ततश्रचतुष्णामपि तेषामेवम् परस्परालापं श्रुत्वा वह्निं च प्रवृद्धमेषमुपरि पतिष्यन्तं दृष्ट्वा नियुक्तपुुरुषैर्बेधभयेन चत्वारोऽप्यलसाः केशैकवाक्यव्य गृहीत्वा गृहार्दं बहिः कृताः। पश्चात्तानालोक्य तैर्नियोजितैः पीठतम् – पतिरेव गतिः स्त्रीणां बालानां जननी गतिः नालसाना गतिः काचिल्लोके कारुणिकं विना। पश्चात्तेषु चतुर्वलसेषु ततोऽप्यधिकतरं वस्तु मन्त्री दापयामास।
संधि-विच्छेद:
ततश्रचतुष्णामपि = ततः + च + चतुष्णाम् + अपि
तेषामेवम् = तेषाम् + एवम्
प्रवृद्धमेषमुपरि = प्रवृद्धम् + एषम् + उपरि
चत्वारोऽप्यलसाः = चत्वारः + अपि + अलसाः
पश्चात्तानालोक्य = पश्चात्तान् + आलोक्य
पतिरेव = पतिः + एव
नालसाना = न + अलसानां
काचिल्लोके = काचित् + लोके
ततोऽप्यधिकतरं = ततः + अपि + अधिकतरम्
शब्दार्थ :
ततः – इसके बाद
चतुष्णामपि – उन चारों का भी
परस्परालापं – आपस की बातचीत
श्रुत्वा – सुनकर
वह्निं – आग को
प्रवृद्धम् – बढ़ी हुई
एषम् – इसको
पतिष्यन्तम् – गिरते हुए
नियुक्तपुुरुषैः – नियुक्त लोगों द्वारा
बेधभयेन – डराकर
गृहीत्वा – पकड़कर
गृहार्दम् – घर का आधा भाग
बहिः कृताः – बाहर कर दिया गया
पश्चात्तानालोक्य – फिर उन्हें देखकर
पीठतम् – आसन पर बैठाकर
पतिः एव गतिः – पति ही स्त्री की आश्रय है
जननी गतिः – माता ही बच्चों की आश्रय
नालसाना गतिः – आलसी की कोई गति (आश्रय) नहीं
काचित् लोके – संसार में कोई
कारुणिकं – दयालु
विना – बिना
दापयामास – दिलवाया
हिंदी अर्थ:
इसके बाद उन चारों आलसी लोगों की आपसी बातचीत को सुनकर और आग की लपटों को उस स्थान की ओर बढ़ते देखकर नियुक्त लोगों ने डराकर उन चारों को बाल पकड़कर घर के बाहर कर दिया।
इसके बाद उन चारों को देखकर नियुक्त लोगों ने आसन पर बैठाकर कहा – "स्त्रियों की गति (आश्रय) उनके पति होते हैं, बच्चों की जननी (माता) ही गति है, पर आलसियों की गति कोई नहीं होती जब तक उन्हें कोई दयालु व्यक्ति न मिले।"
इसके बाद उन चारों आलसियों को मंत्री ने पहले से भी अधिक वस्तुएँ दिलाईं।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न:
Q1. आग की लपटें देखकर नियुक्त लोगों ने क्या किया?
उत्तर:- आलसियों को बाल पकड़कर बाहर निकाल दिया।
Q2. आलसी पुरुषों को कहाँ बैठाया गया?
उत्तर:- पीठ पर (आसन पर)।
Q3. स्त्रियों की गति किसे कहा गया है?
उत्तर:- पति को।
Q4. बच्चों की गति किसे माना गया है?
उत्तर:- जननी (माता) को।
Q5. आलसी की गति किस पर निर्भर करती है?
उत्तर:- किसी कारुणिक (दयालु) व्यक्ति पर।
अभ्यासः (मौखिकः)
1. अधोलिखितानां प्रश्नानां उत्तराणि वदत –
(क) इयं कथा कस्मात् ग्रन्थात् उद्धूतास्ति?
उत्तरं: इयं कथा पुरुषपरीक्षेतिनामकस्य ग्रन्थात् उद्धूतास्ति।
(ख) अस्यां कथायां कस्य महत्वं वर्णितम् अस्ति?
उत्तरं: अस्यां कथायां मानवगुणानां महत्वं वर्णितम् अस्ति।
(ग) अस्याः कथायाः रचनाकारः कः?
उत्तरं: अस्याः कथायाः रचनाकारः विद्यापतिः अस्ति।
(घ) इयं कथा किं शिक्षयति?
उत्तरं: इयं कथा मानवदोषाणां निराकरणाय शिक्षयति।
(ङ) विद्यापतिः कः आसीत्?
उत्तरं: विद्यापतिः लोकप्रिय मैथिली कविः आसीत्।
(च) अस्यां कथायां कस्य दोषस्य वर्णनम् अस्ति?
उत्तरं: अस्यां कथायां आलस्य दोषस्य वर्णनम् अस्ति।
(छ) मिथिलायाः मन्त्री कः आसीत्?
उत्तरं: मिथिलायाः मन्त्री वीरेश्वरः आसीत्।
(ज) किं दृष्ट्वा सर्वे धूर्ताः पलायिताः?
उत्तरं: गृहमग्निं प्रवृद्धमग्निं दृष्ट्वा सर्वे धूर्ताः पलायिताः।
(झ) अलसशालायां बहुद्रव्यव्ययं दृष्ट्वा तन्नियोगिपुरुषैः किं परमृश्म?
उत्तरं: अलसशालायां बहुद्रव्यव्ययं दृष्ट्वा तन्नियोगिपुरुषैः परमृश्म —यदि अक्षम्बुद्ध्या करुणया केवलमलसेभ्यः स्वामी वस्तूनि दापयति, कपटेनानलसा अपि गृह्णन्ति — इत्यस्माकं प्रमादः। यदि भवति तदालसपुरुषाणां परीक्षा कुर्मः।
2. अधोलिखितानां प्रश्नानां उत्तरम् एकशब्देन दत्त –
(क) अग्निं दृष्ट्वा के पलायिताः?
उत्तरं: धूर्ताः।
(ख) कति पुरुषाः सुप्ताः आसन्?
उत्तरं: चत्वारः।
(ग) एकः पुरुषः किम् अवदत्?
उत्तरं: अहो कथमयं कोलाहलः?
(घ) द्वितीयः पुरुषः किम् अवदत्?
उत्तरं: तद्यद्यत् यस्मिन्गृहे अग्निर्लग्नोऽस्ति।
(ड) तृतीयः पुरुषः किम् अवदत्?
उत्तरं: कोऽपि धार्मिको नास्ति। य इदानीं जलाद्वैदर्षाभिः कटैर्वस्र्मान् प्राप्नुयाति।
(च) चतुर्थः पुरुषः किम् अवदत्?
उत्तरं: अये वाचालः! कतिवचनानि वक्तुं शक्नुथ। तृष्णां कथं न तिष्ठथ।
(छ) वीरेश्वरः कः आसीत्?
उत्तरं: मन्त्री।
(ज) तस्य स्वभावः कीदृशः आसीत्?
उत्तरं: दानशीलः कारुणिकः च।
(झ) अलसानां सुखं दृष्ट्वा के कृत्रिमालस्यं दर्शयित्वा भोजनं गृह्णन्ति?
उत्तरं: धूर्ताः।
अभ्यासः (लिखित:)
1. रिक्तस्थानानि पूरयत —
(क) स्थिति: — सौक्यमूलं हि सर्वेषामपि संहतम्। सजातीनां सुखं दृष्ट्वा के न धावन्ति — धावन्ति जन्तवः।
(ख) निर्गतीनां — सर्वेषामलसः प्रथमं मतः। किञ्चित् क्षमते कर्तुं जाठराण्यपि — वह्निना।
(ग) कपटेना — नालसा अपि गृह्णन्ति इत्यस्माकं — प्रमादः।
(घ) विद्यापतिः लोकप्रियः — मैथिलीकविः — आसीत्।
(ङ) नीतिकाराः आलस्यं — रिपुरूपं — मन्यन्ते।
(च) आसीत् मिथिलायां — वीरेश्वरः — नाम मन्त्री।
(छ) पश्चादलसानां सुखं दृष्ट्वा धूर्ताः अपि
कृत्रिममालस्यं दर्शयित्वा — भोज्यं — गृह्णन्ति।
2. एकपदेन उत्तरत -
(क) अलसकथायाः कथाकारः कः?
उत्तर: विद्यापतिः।
(ख) वीरेश्वरः नाम मन्त्री कुत्र आसीत्?
उत्तर: मिथिलायाम्।
(ग) केषाम् इष्ट्रलाभं कृत्वा तुन्दपरिमुजाः वर्त्तलीबभूवुः?
उत्तर: अलसपुरुषाणाम्।
(घ) के कृत्रिममालस्यं दर्शयित्वा भोजनं गृह्णन्ति?
उत्तर: धूर्ताः।
(ङ) तत्रैव कति पुरुषाः सुप्ताः?
उत्तर: चत्वारः।
3. पूर्णवाक्येन उत्तराणि दत्त -
(क) मिथिलायां कः मन्त्री आसीत्?
उत्तर: मिथिलायां वीरेश्वरः मन्त्री आसीत्।
(ख) वीरेश्वरः नाम मन्त्री कस्यः स्वरूचिभोजनं दापयति स्म?
उत्तरम्: वीरेश्वरः नाम मन्त्री सर्वेभ्यः दूर्तेभ्यः अनाथेभ्यः स्वरूचिभोजनं दापयति स्म।
(ग) भीषणभुक्षया अपि कः किमपि कर्तुं न क्षमते?
उत्तरम्: भीषणभुक्षया अपि आलस्यपुरुषाणां किमपि कर्तुं न क्षमते।
(घ) धूर्ताः किं दृष्ट्वा पलायनं कृतवन्तः?
उत्तरम्: धूर्ताः गृहालं प्रबुद्धमग्निं दृष्ट्वा पलायनं कृतवन्तः।
(ङ) चत्वारः अलसाः कैः बहिः कृताः?
उत्तरम्: चत्वारः अलसाः नियोगिनिपुरुषैः बहिः कृताः।
(च) अलसानां कः शरणदः?
उत्तरम्: अलसानां वीरेश्वरः मन्त्री शरणदः।
(छ) जन्तवः केषां सुखं दृष्ट्वा धावन्ति?
उत्तरम्: जन्तवः सजातीनां सुखं दृष्ट्वा धावन्ति।
4. उदाहरणम् अनुसृत्य पदनिर्माणं क्रियताम् –
✦ अलस + व्यञ्ज = आलस्यम्
(क) करुण + व्यञ्ज = करुण्यम्
(ख) बहुल + व्यञ्ज = बहुल्यम्
(ग) प्रधान + व्यञ्ज = प्रधान्यम्
(घ) सरल + व्यञ्ज = सरल्यम्
(ङ) तरुण + व्यञ्ज = तरुण्यम्
(च) कठिन + व्यञ्ज = कठिन्यम्
(छ) वत्सल + व्यञ्ज = वत्सल्यम्
Bihar Board Exam में पूछे जानेवाले महत्वपूर्ण हिन्दी प्रश्नोत्तर
Q1. अलसकथा पाठ में किसका वर्णन है?
उत्तर: अलसकथा पाठ में आलसियों के जीवनशैली, उनके आत्मविश्वास, दुर्दशा और दयनीयता की दयालुता पर चर्चा की गयी है। इसके अतिरिक्त आलसियों के सुख से प्रभावित अन्य कृत्रिम आलसियों की मनोदशा पर भी चर्चा की गई है।
Q2. "अलसकथा" से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर: सुप्रसिद्ध मैथिली कवि विद्यापति जी द्वारा विरचित प्रस्तुत कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि आलस्य एक आत्मघातकारी रोग है। यह रोग हमें निकृष्ट बना देता है। यह न तो केवल ग्रसित व्यक्ति को बल्कि उनके परिवार, समाज आदि को भी दुष्प्रभावित करते हैं। इससे ग्रसित व्यक्ति कोई भी कार्य समय पर संपन्न नहीं कर पाते हैं।
Q3. आलसियों को घर से किसने और क्यों निकाला?
उत्तर: आलसियों को घर से राजपुरुषों ने निकाला क्योंकि उन्हें लगा कि यह आलसी अपने आप घर से नहीं निकलेंगे और इस तरह उनके बंध से जाने से अवरोध उत्पन्न होगा।
Q4. बढ़ते आलसियों को देखकर राजपुरुषों ने क्या किया?
उत्तर: बढ़ते आलसियों को देखकर राजपुरुषों ने यह विचार किया कि स्वामी दयालुता से केवल आलसियों को ही उत्तम वस्त्र देते हैं, लेकिन कपट से अनआलसी भी ग्रहण करता है, यह तो हमारी आलस्य है। अतः हमें इसकी परीक्षा करनी चाहिए। ऐसा विचार कर सोए हुए आलसियों के घर में आग लगा दिया।
Q5. चारों आलसी का संवाद अपने शब्दों में लिखें?
उत्तर: अलसशाला में आग लगने के बाद सभी कपटी आलसी भाग गए, थोड़ा बहुत आलसी भी भाग गए। बस चार पुरुष वहीं सोए हुए आपस में बात करने लगे — एक ने दूसरी तरफ से उठे मुख से कहा गया: "अरे! यह कैसी हलचल,"
दूसरे आलसी के द्वारा कहा गया: "लगता है कि इस घर में आग लगी है।"
तीसरी आलसी के द्वारा कहा गया कि: "कोई भी ऐसे धार्मिक व्यक्ति नहीं है, जो हमें इस समय जल से भीगे हुए चटाई से ठेंक दे।"
चौथे आलसी के द्वारा कहा गया: "अरे! वाचालों कितने बोलने में सकते हो, चुपचाप क्यों नहीं रहते हो!"
मुझे आशा है, कि उक्त लिखित पोस्ट Bihar Board Class 10th Sanskrit Chapter 3, का अलसकथा पीयूषम् भाग 2 (Alaskatha) को क्रमबद्ध तरीके से पढ़ें और समझें होंगे और आपके Bihar Board Class 10th Sanskrit Chapter 3 (वर्ग – 10, संस्कृत का अध्याय 3 अलसकथा) का विश्लेषण उपयोगी रहें होंगे।
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