Bihar Board Class 10th Sanskrit Chapter 3 | मङ्गलम् | पीयूषम् भाग - 2

 

Class 10th Sanskrit Chapter 1 - मङ्गलम् (Mangalam)

मङ्गलम् (Mangalam):

“मङ्गलम्” शब्द का अर्थ “शुभ या कल्याणमय” होता है। क्योंकि हमारे भारतीय सभ्यता में किसी भी मंगल कार्य करने से पूर्व मंगल ध्वनि या मंगल मंत्र का शुभ उच्चारण किया जाता है।


[उपनिषद:]

वैदिकवाङ्मयस्य अन्तिमे भागे दर्शनशास्त्रस्य सिद्धान्तान् प्रकटयन्ति। सर्वत्र परमपुरुषस्य परमात्मनः महिमा प्रधानतया गीयते। तेन परमात्मना जगत् व्याप्तमनुशासितम् चास्ति। स एव सर्वेषां तपसां परं लक्ष्यं। अस्मिन् पाठे परमात्मपर उपनिषदाम् पञ्चमन्त्राः संकलिताः सन्ति।


संधि-विच्छेद:

व्याप्तमनुशासितम् = व्याप्तम् + अनुशासितम्।

चास्ति = च + अस्ति।


शब्दार्थ:

सर्वत्र – सभी जगह।

महिमा – महानता।

गीयते – गायी गयी है।

तेन – उन्हीं।

जगत् – संसार।

एव – ही।

परम् – सबसे बड़ा।

अस्मिन – इस (में)


व्याख्या :-

(मङ्गलम् पाठ उपनिषद् वैदिकवाङ्मय के अंतिम भाग में दर्शनशास्त्र के सिद्धान्तों से प्रकट होते हैं। सभी जगह परम पुरुष परमात्मा के महिमा को प्रधानतापूर्वक गायी गयी है। उन्हीं परमात्मा से यह संसार व्याप्त और अनुशासित है। वही सभी तपस्याओं का सबसे बड़ा लक्ष्य है। इस पाठ में उन्हीं परमात्मा के लिए उपनिषद् से पाँच मंत्र (श्लोक) पद के रूप में संकलित है।)


वस्तुनिष्ठ प्रश्न :-

Q1. पीयूषम् भाग – 2 में संकलित प्रथम सर्ग (पाठ) का क्या नाम है?

उत्तर: मङ्गलम्।

Q2. “मङ्गलम्” शब्द का अर्थ क्या होता है?

उत्तर: सर्व मङ्गलमय।

Q3. “मङ्गलम्” पाठ किससे लिया गया है?

उत्तर: उपनिषद् से।

Q4. उपनिषद् की कुल संख्या कितनी है?

उत्तर: 108।

Q5. “मङ्गलम्” पाठ किस उपनिषद् से लिया गया है?

उत्तर: वैदिकवाङ्मय उपनिषद से।

Q6. “मङ्गलम्” पाठ के रचनाकार कौन हैं?

उत्तर: महर्षि वेदव्यास जी।

Q7. “मङ्गलम्” पाठ में किसके महिमा का गुणगान किया गया है?

उत्तर: परमात्मा के।

Q8. “मङ्गलम्” पाठ में कितने मंत्र संकलित हैं?

उत्तर: पाँच (05)।


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प्रथम: पाठः — मङ्गलम्

श्लोक संख्या - 01

(01.) हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्।

तत्त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये।।


अन्वया:

हे पूषन्! सत्यस्य मुखं हिरण्मयेन पात्रेण अपिहितम् (वर्तते), तत् सत्यधर्माय (मह्यम्) दृष्टये अपावृणु।।


संन्धि-विच्छेद :-

सत्यापिहितम् = सत्यस्य + अपिहितम्

पूषन्नपावृणु = पूषन् + अपावृणु

तत्त्वं = तत् + त्वम्


शब्दार्थ :-

सत्यस्य – सत्य का।

हिरण्मयेन – सोने-सा।

पात्रेण – आवरण से।

अपिहितम् – ढंका हुआ।

तत् – उस (नपुंसक लिंग के लिए)।

मह्यम् – मुझे।

दृश्ये – प्राप्ति के लिए।

अपावृणु – हटा दें।


श्लोकार्थ :-

हे पूषन् (सूर्य)! सत्य का मुख स्वर्ण सदृश आवरण से ढंका हुआ है। उसे सत्यधर्मवानों की प्राप्ति के लिए हटा दें।


वस्तुनिष्ठ प्रश्न –

Q1. हिरण्मयेन पात्रेण ——– दृश्ये। किस उपनिषद् से लिया गया है?

उत्तर: ईशावास्योपनिषद् से।

Q2. सत्य का मुख किससे ढंका हुआ है?

उत्तर: हिरण्मय पात्र से।


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प्रथम: पाठः — मङ्गलम्

श्लोक संख्या - 02

अणोरणीयान् महतो महीयान् आत्मस्य

जन्तोर्निहितो गुहायाम्।

तमक्रतुः पश्यति वीतशोको

धातुप्रसादान्महिमानमात्मनः।।


अन्वया:

जन्तोः गुहायां निहितः (अयम्) आत्मा अणोः अणीयान्, महतः महीयान् (च वर्तते)। अक्रतुः धातुप्रसादात् आत्मनः तम् महिमानं पश्यति, वीतशोकः (च भवति)।।


संधि-विच्छेद :-

अणोरणीयान् = अणोः + अणीयान्।

जन्तोर्निहितो = जन्तोः + निहितः।

तमक्रतुः = तम् + अक्रतुः।

प्रसादान्महिमानमात्मनः = प्रसादात् + महिमानम् + आत्मनः।


शब्दार्थ :-

अणोः – सूक्ष्म से।

अणीयान् – सूक्ष्म।

महतः – महान से।

महीयान् – महान।

जन्तोः – प्राणियों के।

निहितः – बंद है।

गुहायाम् – हृदय रूपी गुफा में।

तम् – उसे।

अक्रतुः – विद्वान पुरुष।

पश्यति – देखते हैं।

वीतशोकः – शोक रहित होकर।

धातुप्रसादात् – इन्द्रियों के प्रभाव से।


श्लोकार्थ :-

प्राणियों के सूक्ष्म-से-सूक्ष्म और महान-से-महान आत्मा हृदयरूपी गुफा में बंद है। इसलिए विद्वान पुरुष उस श्रेष्ठ परमात्मा को इन्द्रियों के प्रभाव से शोक रहित होकर देखते हैं।


वस्तुनिष्ठ प्रश्न :-

Q1. सूक्ष्म-से-सूक्ष्म क्या है?

उत्तर: आत्मा।

Q2. महान-से-महान क्या है?
उत्तर: आत्मा।
Q3. प्राणियों के हृदयरूपी गुफा में क्या निहित है?
उत्तर: आत्मा।
Q4. विद्वान पुरुष शोक रहित होकर किसे देखता हैं?
उत्तर: आत्मा को।
Q5. अणोरणीयान् _______ धातुप्रसादान्महिमानमात्मनः। किस उपनिषद् से संकलित है?
उत्तर: कठोपनिषद् से।

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प्रथमः पाठः - मङ्गलम्
श्लोक संख्या - 03
सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा यत्र तत् सत्यस्य परमं निधानम्।।


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